‘हिन्दी भाषाः वैज्ञानिक उपयोगिता’ विषय पर कार्यशाला

आज दिनांक 20 मार्च, 2024 को भाकृअनुप- विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में ‘हिन्दी भाषाः वैज्ञानिक उपयोगिता’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता के रूप में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ0 प्रीति आर्या उपस्थित रहीं। सर्वप्रथम भाकृअनुप- विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक डॉ लक्ष्मी कान्त ने सभी सहभागियों का स्वागत करते हुए उन्हें संस्थान के कार्यों व राजभाषा के महत्व की जानकारी दी। उन्होंने सभी को बताया कि हमारा संस्थान राजभाषा विभाग द्वारा वर्गीकृत क्षेत्रों मे से ‘क’ क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। उन्होंने सभी से अपील की कि वे वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रचार-प्रसार में हिन्दी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करें। मुख्य वक्ता डॉ प्रीति आर्या ने हिन्दी भाषा की वैज्ञानिक उपयोगिता विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि हिन्दी भाषा संस्कृत से निकली भाषा है। यह एक विकसित भाषा के रूप में देखी जाती है। विज्ञान को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान एक ऐसा ज्ञान है जो हमें अनुसंधान से विशिष्टता की ओर ले जाता है। वर्तमान संदर्भ में उन्होंने त्रिभाषा यानि हिन्दी, अंग्रेजी व क्षेत्रीय भाषा में विज्ञान की दृष्टि से प्र्रगति की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हिन्दी स्थापित नहीं हो पा रही है क्योंकि हम अंग्रेजी भाषा को प्रोत्साहन दे रहे हैं। उनके शब्दों में भाषा को विज्ञान का पर्याय नहीं माना जाता। उनके अनुसार हमें परिस्थिति अनुसार शब्दों का चयन करना चाहिए तभी हिन्दी व्यवहारिक रूप में आगे आएगी और उसकी वैज्ञानिकता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि हिन्दी को विश्व की तीसरी भाषा के रूप में देखा जा रहा है जो कि एक सुखद अनुभव है। हिन्दी आज प्रयोजन मूलक भाषा यानि कृत्रिम भाषा के रूप में उभरी है। आज चिकित्सा के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी हिन्दी उभर रही है। उनके अनुसार जब तक व्यवहार है, भाषा कभी समाप्त नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि विज्ञान हमारे चिन्तन को विशिष्टता की ओर ले जाता है। गतिशीलता ही मानव जीवन हेतु आवश्यक है और भाषा हमें गतिशीलता की ओर ले जाती है। उनके अनुसार भाषा में बदलाव की आवश्यकता नहीं। हम स्थान विशेषानुसार प्रतिपारिक भाषी शब्दों का चयन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय हिन्दी आयोग व राजभाषा विभाग द्वारा शब्दावली बनायी गयी है, जिनमें हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले शब्दों को देख सकते हैं और अपने व्यवहार व शोध में उनका प्रयोग कर सकते हैं।कार्यशाला में भाकृअनुप- विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के फसल सुधार प्रभाग के प्रभागाध्यक्ष डॉ0 निर्मल कुमार हेडाऊ, फसल उत्पादन प्रभाग के प्रभागाध्यक्ष डॉ0 बृज मोहन पाण्डे, समस्त वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रशासनिक व सहायक वर्ग के कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यशाला का संचालन भाकृअनुप- विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा की मुख्य तकनीकी अधिकारी व प्रभारी राजभाषा अधिकारी श्रीमती रेनू सनवाल तथा धन्यवाद प्रस्ताव वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका खाती द्वारा दिया गया।